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Showing posts from June, 2020

वीरता

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वीरता  किस मिट्टी से  बने हैं वो  मानो कठिनाइयों से तने हैं वो  इस धरती पर ही पने हैं वो   मानो स्वर्ग में पले हैं वो  दिन रात इंसान आखिर किसकी बोली गए  क्या कहने उसके , जो देश के लिए अमर होजाए  वो छोड़ चले परिवार अपने देश के लिए  कैसे चुकायेंगे हम वो एहसान  उनके इस पेश के लिए  वो छोड़ चला परिवार उसे देश प्यारा था  आखिर वोभी किसी माँ का दुलारा था  इन बीते वर्षो में कई जंग देखी है  पर उस अग्नि की मार आखिर उन्होंने सेकि है  उनकी वीरता मानो पर्वत सी कठोर है  कोई हिला दे इन्हे आखिर किसमें वो जोर है  आखिर ये जीवन सबको प्यारा है  वोभी किसी माँ का दुलारा है  उस सहस और बल के क्या कहने  उनका मन भी करे घर साथ रहने  वो लहू जो उनकी रेखाओ में पनपता  नाजाने  वो वीर किसका नाम जपता  वो योद्धा कभी ना हारा है  आखिर वोभी किसी माँ का दुलारा है  कितनो में साहस है वीर बनने को  कितनो में है बल उस अग्नि से तपने को  हमने क्या किया है, जो इतना है अभिमान  वही है वीर उनका रखो सम्मान  वो वीर चमकता तारा है   वोभी किसी माँ का दुलारा है  जिस उम्र में हम दुनिया देखते  उस उम्र में नजाने वो कितनी कठिनाइया सेहेते  जिस उम्र

Jeevan

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Jeevan mano vo paheli , Jisme na jane kitno ne kitni dukh jheli. Khushiya barsi to mano barsat si... Nahi to, kat te nindiya dukh raat si... Yadi faisla na kiya duniya me aane ka hamne  Fir khahe saval uthaye jivan par tumne  Jivan mano gardan me bandha hua dhol  Ab jab band hi diya hai to,  kyun na bajaya jaye kuch sur taal ke bol.... Kuch bhaaye sunne vale ko  Kuch jaye dil ke kinaro ko ... Yadi pachtaye gardan hi hone ka ... To kya yehi jivan hai aise dukh prashno se jine ka.... Jab bhage tar bitar uus daulat ki khoj me  Din dhalte aaye uss dukh ke bohj me... Khushiya na mili dhan sampatti me .. Vo theheri apni gav ki basti me  Shuru hua safar jab,  duniya mithi boli roye.... Ab jab mila hi hai ausar .. Fir khahe ko chup hoye.... Akhiri din jab hum, mithi nind soye  Ab najane kyun duniya dukh ki boli roye.... Ek hi to jivan hai , isse kaise zaya krde  Mauka chalte upar vala najane kiske jholi bharde ... Jab char din ki zindagi maani hai  Fir kyun ab isse thukrani hai .. To thoda khu

उठ चलो भारतीयों

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आए मेरे प्यारे देश वासियो  आए मेरे प्यारे देश वासियो  क्यों अब्भी धर्म पर लड़ते हो  आज़ादी मिले अरसा होगया,  पर अब्भी वही रहा चल पड़ते हो।  जो सपने दिखाए हमें महात्मा  जो रहा सुझाई हमें बोस  अब मनो बिखर सी गई वो आत्मा  अब थम सा गया वो जोश।  आज़ादी मिले तो अरसा होगया   पर खो बैठे शायद वो होश  उम्मीद जगी आंबेडकर के होने से  हम भी इंसान है भले ही छोटी जात होने से  पर अब शर्म आचला इंसान ही होने का  उस सूद्र कोभी दुःख है अपनों को खोने का।  आज़ादी मिले तो बरसो बीते  क्यों नहीं हम एकता की डोर आज सिते  ये देश जो सिखाये विभिन्त की विशेषता  जो जोड़े हमें हर धर्म हर प्रांत से  हम तो फिर भी भारत वासी है  नजाने क्यों लोगो में है वो खेद  क्यों नहीं समझ पा रहे वो इतना सा ये भेद  आज़ादी को मिले 73 वर्ष बीते  फिर भी हम वही जात पात की डोर सीते।  ना डर है हमें धर्म का और नाही किसी भरम का  डर है तो केवल  उस इंसान का  जो खिलाफ है इस प्यारे प्रांत का।  ये बाते बहोत है कहने को  जीवन में दुःख बहुत है सहने को  कुछ ही चीज़े है समझने को  एकता वही , साथ में रहने को                                               ~उमेश सूर्

2020

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Kya kami thi is mahamari me Jo ab naya anth lag rha hai  Desh me na jano kitno ka ghar ujad rha hai  Kitne sapne dekhe in ane vale varsho ke  Tut chale parivar na jane kitne barso ke  Ab aisa jivan hai ki kya parso aur kya  tarso Log tarse yahan anaj aur tinke bhar pane ke liye sarso   Phele se mahamari fir upar se ye aandhi Ab anjane aaya kahan se ye  tiddiyon(locusts) ka tofaan Ab to mano insan do pal khane ko pareshan  Dosh dene ki addat thi, bas dosh dete hi rhegaye  Ye tera vo mera isme najane hum kahan kho chalegaye  Ab prakruti ka prakop hai  Ab Kis kis ko dosh doge  Ab apni hi galtiyo ke liye Kitno ke haath dho oge Phele se mahamari upar se logo ki alag  mansik bimari  Kuch bachaye hamari jaan to kuch desh ki shaan  Hum to keval  do pal ghar baithne se pareshaan  Jab de rhi prakruti hame itne sanket  Q nahi smjh pa rhe hum itna sa ye bhed  Shayad pheli dafa hua ho aisa  Jab insan baithe bebas jaisa Aur khayal na ho ki khushiya d

Tufaan

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Kyu man halchal sa hai har pal Kisse pata hai  ab kya hoga kal Jo Barishe krti har fhasal ko ujwal Par roke us tufaan ko, akhir kisme hai vo bal  Har choti khushiya ab bhay me badal rhi hai   mano sharir bacha ho ruka sukha sa ab to keval saase chal rhi hai   vo bunde,  jo kuch ke liye khushiya lehera de  yadi  saath miljaye, kuch ka ghar hi pani me sehera de akhir samay bada balvaan  mano ban rakha ho haivaan ab kya soche, ab bas iccha hai krne ki karwaan ab aur kya dekhna , kya hi hai baki  kyun na kuch khushiya hi baat li jaye  baad me rhe na jaye pachtava taki abhi tak kuch hua nahi hai  rakhiye thoda Dhiraj upar vale ki iccha rhi to jayenge vapas tirath.                                                                            ~ Umesh Surya