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Illusion

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  We are all the dancing crap of the world  Living in the illusion of being someone else What it's like to be ourselves nobody tells Never been the way we crafted ourselves Coz every now and then comparing with everybody else Standing on someone's else shoulder  calling ourselves tall doesn't make one Walking on someone's else way will  never get your job done  Slowly the inner self is fading away The self respect has lost its charm  Those fake influencers are making people blind  Showing the world that they are the only true kind  Celebrities are just dancing crap of money  They advertise which they never use  Only the fair one wins which they choose  We are all just  living in comfort of those tiny little shells What our future will be only our karma tell Those comforts and pleasure started a pool of laziness Worrying and complaining have became daily task  Wondering those days when your hobbies hot all attention you asked for With covid19 we have realized nothing las

स्वतंत्र दिवस

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  स्वतंत्र दिवस   फिर एक बार वो स्वतंत्र दिवस जो आया  घर ही घर फिर वो ध्वज लेहेराया हर वासी भारत माँ के गीत जो गाया  मन ही मन दिल यु फिर मुस्कुराया    कुछ खास जो इस देश की बातें है  एकसाथ हमें जो यु जोड़े जाते है उत्तर में जो हिमालय विराजमान है  देश की शृंखला जो भारत की जान है  वहां बैठे हमारे वीर वो इस देश की शान है  भारत की ससंस्कृति जिसपर हमें स्वाभिमान है  राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह उनका ही बलिदान है  कैसे भूलेंगे वो जलियाँवाला बाग की वो गोलिया  जब देश गा रहा था इंक़लाब की बोलिया    ये महात्माओ की जो भूमि है यहाँ पवित्र गंगा का वास है  कभी दिवाली कभी दसशेरा तो  कभी ईद ए मिलाद है  इसीलिए इस देश में कुछ खास है  हमें भारतीय होने पर नाज़ है   लकीरो से नापा गाया ये जो संसार है  भारत माने आखिर ये सब अपना ही परिवार है  इस पावन भूमि में एकता का जो प्यार है  शायद एहि है जो जीवन जीने का सार है  आज फिर वो ध्वज जो यु लेहेराय  गर्व से मन फिर यु उठ पाया  आखिर स्वत्रन्त्र दिवस जो आया  मन ही मन दिल फिर यु मुस्कुराया                                                                                      

Zindagi Aur College

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Zindagi aur college  Ye zindagi bhi kya zindagi jisme na rone ko mile  Vo college bhi kya college jab lecture me na sone ko mile Ye zindagi bhi kya zindagi jab life me na "chai" ho  Vo college bhi kya college jisme na koi apna " Bhai " ho. Ye zindagi bhi kya zindagi jisme jine ka rush ho  Vo college bhi kya college jisme koi na crush  ho. Ye zindagi bhi kya zindagi jo maza na de pine ka  Vo college bhi kya college jo maza na de jine ka  Ye zindagi bhi kya zindagi jo local jaisi late na ho  Vo college bhi kya college jisme piche se ghusne ka gate na ho. Ye zindagi bhi kya zindagi jisme koi quest na ho  Vo college bhi kya college jisme koi  fest na ho .  Ye zindagi bhi kya zindagi jo lecture jaisi boring ho  Vo college bhi kya college jisme subject na scoring ho . Ye zindagi bhi kya zindagi jaha discipline na according ho Vo college bhi kya college jab lecture me na morning ho .  vo  zindagi bhi kya zindagi  jab life me na akaar ho  vo college bhi kya college jiske ca

वीरता

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वीरता  किस मिट्टी से  बने हैं वो  मानो कठिनाइयों से तने हैं वो  इस धरती पर ही पने हैं वो   मानो स्वर्ग में पले हैं वो  दिन रात इंसान आखिर किसकी बोली गए  क्या कहने उसके , जो देश के लिए अमर होजाए  वो छोड़ चले परिवार अपने देश के लिए  कैसे चुकायेंगे हम वो एहसान  उनके इस पेश के लिए  वो छोड़ चला परिवार उसे देश प्यारा था  आखिर वोभी किसी माँ का दुलारा था  इन बीते वर्षो में कई जंग देखी है  पर उस अग्नि की मार आखिर उन्होंने सेकि है  उनकी वीरता मानो पर्वत सी कठोर है  कोई हिला दे इन्हे आखिर किसमें वो जोर है  आखिर ये जीवन सबको प्यारा है  वोभी किसी माँ का दुलारा है  उस सहस और बल के क्या कहने  उनका मन भी करे घर साथ रहने  वो लहू जो उनकी रेखाओ में पनपता  नाजाने  वो वीर किसका नाम जपता  वो योद्धा कभी ना हारा है  आखिर वोभी किसी माँ का दुलारा है  कितनो में साहस है वीर बनने को  कितनो में है बल उस अग्नि से तपने को  हमने क्या किया है, जो इतना है अभिमान  वही है वीर उनका रखो सम्मान  वो वीर चमकता तारा है   वोभी किसी माँ का दुलारा है  जिस उम्र में हम दुनिया देखते  उस उम्र में नजाने वो कितनी कठिनाइया सेहेते  जिस उम्र

Jeevan

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Jeevan mano vo paheli , Jisme na jane kitno ne kitni dukh jheli. Khushiya barsi to mano barsat si... Nahi to, kat te nindiya dukh raat si... Yadi faisla na kiya duniya me aane ka hamne  Fir khahe saval uthaye jivan par tumne  Jivan mano gardan me bandha hua dhol  Ab jab band hi diya hai to,  kyun na bajaya jaye kuch sur taal ke bol.... Kuch bhaaye sunne vale ko  Kuch jaye dil ke kinaro ko ... Yadi pachtaye gardan hi hone ka ... To kya yehi jivan hai aise dukh prashno se jine ka.... Jab bhage tar bitar uus daulat ki khoj me  Din dhalte aaye uss dukh ke bohj me... Khushiya na mili dhan sampatti me .. Vo theheri apni gav ki basti me  Shuru hua safar jab,  duniya mithi boli roye.... Ab jab mila hi hai ausar .. Fir khahe ko chup hoye.... Akhiri din jab hum, mithi nind soye  Ab najane kyun duniya dukh ki boli roye.... Ek hi to jivan hai , isse kaise zaya krde  Mauka chalte upar vala najane kiske jholi bharde ... Jab char din ki zindagi maani hai  Fir kyun ab isse thukrani hai .. To thoda khu

उठ चलो भारतीयों

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आए मेरे प्यारे देश वासियो  आए मेरे प्यारे देश वासियो  क्यों अब्भी धर्म पर लड़ते हो  आज़ादी मिले अरसा होगया,  पर अब्भी वही रहा चल पड़ते हो।  जो सपने दिखाए हमें महात्मा  जो रहा सुझाई हमें बोस  अब मनो बिखर सी गई वो आत्मा  अब थम सा गया वो जोश।  आज़ादी मिले तो अरसा होगया   पर खो बैठे शायद वो होश  उम्मीद जगी आंबेडकर के होने से  हम भी इंसान है भले ही छोटी जात होने से  पर अब शर्म आचला इंसान ही होने का  उस सूद्र कोभी दुःख है अपनों को खोने का।  आज़ादी मिले तो बरसो बीते  क्यों नहीं हम एकता की डोर आज सिते  ये देश जो सिखाये विभिन्त की विशेषता  जो जोड़े हमें हर धर्म हर प्रांत से  हम तो फिर भी भारत वासी है  नजाने क्यों लोगो में है वो खेद  क्यों नहीं समझ पा रहे वो इतना सा ये भेद  आज़ादी को मिले 73 वर्ष बीते  फिर भी हम वही जात पात की डोर सीते।  ना डर है हमें धर्म का और नाही किसी भरम का  डर है तो केवल  उस इंसान का  जो खिलाफ है इस प्यारे प्रांत का।  ये बाते बहोत है कहने को  जीवन में दुःख बहुत है सहने को  कुछ ही चीज़े है समझने को  एकता वही , साथ में रहने को                                               ~उमेश सूर्

2020

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Kya kami thi is mahamari me Jo ab naya anth lag rha hai  Desh me na jano kitno ka ghar ujad rha hai  Kitne sapne dekhe in ane vale varsho ke  Tut chale parivar na jane kitne barso ke  Ab aisa jivan hai ki kya parso aur kya  tarso Log tarse yahan anaj aur tinke bhar pane ke liye sarso   Phele se mahamari fir upar se ye aandhi Ab anjane aaya kahan se ye  tiddiyon(locusts) ka tofaan Ab to mano insan do pal khane ko pareshan  Dosh dene ki addat thi, bas dosh dete hi rhegaye  Ye tera vo mera isme najane hum kahan kho chalegaye  Ab prakruti ka prakop hai  Ab Kis kis ko dosh doge  Ab apni hi galtiyo ke liye Kitno ke haath dho oge Phele se mahamari upar se logo ki alag  mansik bimari  Kuch bachaye hamari jaan to kuch desh ki shaan  Hum to keval  do pal ghar baithne se pareshaan  Jab de rhi prakruti hame itne sanket  Q nahi smjh pa rhe hum itna sa ye bhed  Shayad pheli dafa hua ho aisa  Jab insan baithe bebas jaisa Aur khayal na ho ki khushiya d